Busy Lifestyle and Childhood in Hindi – व्यस्त जीवन शैली और बचपन
Busy Lifestyle and Childhood के बारे में आज कहा जाता है की, ये एक सबसे बड़ी विडम्बना और इसके चलते बचपन आज खो गया है. हर एक व्यक्ति अपने बचपन में जो करता है. वो जीवन भर उस बात को नहीं भुला पाता है.
यही कारण है की बचपन के दोनों को हम अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ दिनों में से मानते है. बचपन को अंग्रेजी भाषा में Childhood कहा जाता है.
इस व्यस्त जीवन शैली और बचपन पोस्ट के माध्यम से आज जो छोटे बच्चो पर पढाई का बोझ है, उनके ऊपर लादी गयी कुछ शिस्तबद्दता है. जो कही न कही उनके बचपन का टेंशन से भर देती है.
बचपन में उनके अन्दर जो शारीरिक विकास की गति होती है. उसे रोक देती है. उनके अन्दर की कुछ उन्मुक्त कलाए होती है. उनका ह्रास हो रहा जाता है.
इन सभी बातों का कारण क्या है. क्यों ऐसे परिस्थिति का निर्माण हो रहा है. जिनके ऊपर हमें सोच विचार करना चाहिए.
उसके बाद हमें उनके उपाय करके ऐसा वातावरण निर्माण करना चाहिए. जिससे की उनके बचपन की रक्षा की जा सके.
तो आइये इन सके पीछे छुपे कुछ कारणों का हम अध्ययन करते है. जो इस प्रकार है :-
1. भागदौड भरी दिनचर्या :-
आज के दौर में भागदौड से भरी दिनचर्या को जीने के लिए हमारे बचपन के सिपाही मजबूर है. हमारे बचपन के सिपाही से हमारा तात्पर्य है.
हमारे बच्चे जो की अपने आप में एक सिपाही की तरह दिन पर कुछ न कुछ नया करने की होड़ में हमारी याने अपने माता – पिता की आशाओ पर खरा उतरने के लिए दिनभर भागादौड़ी में लगा रहता है.
घर से स्कूल उसके बाद घर आकर Tuition जाना. फिर आने के बाद Homework करना इन सभी में इतना वक्त चला जाता है, की दिनचर्या पूरी तरह व्यस्त हो जाती है. अगर कोई छुट्टी हो तो फिर से Extra Class की तयारी कर ली जाती है.
ये सबकुछ क्यों हो रहा है. क्योकि बच्चा अपने माता पिता का नाम रोशन कर सके. परन्तु उसके माता पिता इस बात की चिंता ही नहीं करते है की हमारे बच्चे की मानसिक अवस्था किस हद तक बदल गयी है.
जितनी उसकी जान नहीं है उतना उसपर हमारी आशाओ का बोझ लाद दिया जा रहा है. इस बात पर हमें ध्यान देना चाहिए की बच्चा इस बात को संभाल पा रहा है या नहीं.
2. माता पिता की आशाये और पढाई का बोझ:-
वर्तमान जीवन शैली में बच्चो पर जो पढाई का बोझ बढता दिख रहा है. ये तो ऐसे मालूम होता है. जैसे की बच्चो को बचपन से कलेक्टर बनाने की तैयारिया शुरू कर दी जाती है.
उसे क्या बनाना है ये उसे कोई नहीं पूछता है. बस ये कह दिया जाता है की, उसे को इंजिनीअर बनाना है. कोई उस कोमल मन की पुकार तक नहीं सुनता है की उसे किस काम में रूचि है. किस काम को करके तुम्हे ख़ुशी मिलेगी.
अगर हर मा-बाप अपने बच्चे को ये पूछ ले की उसे क्या बनाना है तो आधी चिंता ही ख़तम हो जाएगी. परन्तु वर्तमान में माता पिता बच्चो पर अपनी इच्छा लादते दिखाई देते है. जिसमे बच्चो को नसीहत देते है की तुम्हे तो इंजिनीअर, डॉक्टर वगैरा वगैरा ही बनाना है.
इसके लिए शुरू होता है बचपन को मारने वाला दबाव तंत्र. जो उन बच्चो को के बचपन को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. पढाई और लिखाई के दबाव में उस बच्चे में जो कला उसे जन्मजात हासिल होती है. उसे विलुप्त कर दिया जाता है.
ऐसी परिस्थिति में वो अपनी पढाई उस दबाव तंत्र के आगे घुटने टेककर पूरी कर लेता है. और एक डॉक्टर बन भी जाता है. पर क्या वह अपने कार्य से पूरी तरह संतुष्ट रह पायेगा. ये तो वो ही जान सकता है. पर हमारे मुताबिक संतुष्टि उसी कार्य में होती है. जो हम अपने दिल से किया करते है.
जैसे की मुझे ब्लॉग लिखना अच्छा लगता है. तो मै ब्लॉग लिखता हु. परतु वैसे मेरा पेशा कुछ और है. मै एक सरकारी कर्मचारी हु. इस Lockdown की वजह से मैंने ये ब्लॉग शुरू किया. क्योकि घर में बैठना मेरे लिए बोरिंग है. नहीं तो मै भी अपना सरकारी जॉब अपनी खुशी से नहीं करता हु.
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3. मोबाइल्स और टीवी शोज का क्रेज :-
वर्तमान में बच्चो के जीवन में मोबाइल और टीवी शोज का बड़ा ही क्रेज है. जिसका मुख्य करना है उनकी समाज से बनी दूरिया. इस दुरी को भरने में मोबाईल और टीवी शोज ही सही उपाय उनको नजर आते हो. यही करना है की इन मोबाइल्स की स्क्रीन के अन्दर उनका बचपन दम तोड़ देता है.
4. शारीरिक कसरत से दुरी :-
बच्चो की शारीरिक कसरते आज के समय में उनके लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो सकती है. शारीरिक कसरतों के द्वारा ही उनके शरीर, मन, मस्तिष्क को स्वस्थ रखा जा सकता है.
परन्तु आज के व्यस्त जीवन शैली की कारण शारीरिक कसरत से दुरी हो गयी है. यह उनके बचपन के विकास में बाधा उत्पन्न करता है.
5. खेल के मैदानों का आभाव :-
भारत देश का विकास बड़ी तेजी से हो रहा है. जिससे बहुत से प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने की कगार पर है. वैसे ही मैदान को रिहायशी इलाको में बदला जा रहा है.
जिसके करना खेल के मैदानो का आभाव हमारे देश में हो रहा है. ऐसे में बच्चो की शारीरिक विकास के लिए उन्हें पूरा मौका नहीं मिल पा रहा है.
6. सामाजिक जीवन से कटाव :-
बच्चो की जीवन शैली वर्तमान युग में ऐसी हो गयी है, जिसे देखकर लगता है मनुष्य भविष्य में सामाजिक प्राणी नहीं रह जायेगा. आज के दौर में लोग अकेले रहना ज्यादा पसंद कर रहे और वैसे ही अपने बच्चो को भी सिखा रहे है.
यही कारण है की बच्चो में सामाजिक जीवन से कटाव की आदतों को देखा गया है. बहुत से वैज्ञानिको ने इस स्वाभाव को भविष्य के लिए खतरा बताया है. जिससे मनुष्य जाती के सामाजिक जीवन जीने की शैली में काफी फर्क आएगा.
आज का ऑनलाइन और डिजिटल वातावरण भी इसके लिए जिम्मेदार है. सम्पूर्ण विश्व इस ऑनलाइन और डिजिटल महामारी का शिकार बनता नजर आ रहा है.
7. आत्मविश्वास की कमी :-
बच्चो में आत्मविश्वास की कमी आने का भी एक करना उनके व्यस्त जीवनशैली को बताया जा रहा है. व्यस्त जीवन शैली के कारण उनका सामाजिक जीवन से कटाव होता जा रहा है, जिससे उन्हें आमने सामने बात करने के बारे में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है.
ऐसा होना भविष्य की चिंता बन सकती है. आत्मविश्वास की कमी के कारण बच्चो के अन्दर जन्म लेने वाली Creative Skill को मार डालती है.
8. स्वास्थ्य पर प्रभाव :-
बच्चो की व्यस्त जीवनशैली के दुष्परिणाम उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पर देखे जा सकते है. बच्चो में होने वाले रोग जो की सामान्यतः बुढ़ापे में हुआ करते है.
ऐसे रोगों का सामना उनके बचपन में ही उन्हें देखने को मिलता है. जैसे बालों का पकाना, हार्ट अटैक, दमा, हाथ पाँव का दर्द, जोड़ो का दर्द, ऐसे कई रोगों से ग्रस्त बच्चे जो अपने बचपन के विकास की प्रथम अवस्था में ही इनका शिकार हो जाते है.
इसका मुख्य कारण वर्तमान में बच्चो की व्यस्त दिनचर्या को बताया जाता है.
Conclusion :-
Busy Lifestyle and Childhood in Hindi अर्थात व्यस्त जीवन शैली और बचपन पोस्ट के माध्यम से हमारे द्वारा जो जानकारी आपको बताई गयी. उसके निष्कर्ष में ये बात करना सही होगा की, बच्चो की दिनचर्या में हमें सुधार लाने की आवश्यकता है. जिसके द्वारा हम उनके बचपन को खोने से बचा सके. उनके सम्पूर्ण विकास के मार्ग को प्रशस्त किया जा सके. धन्यवाद्…