भाषा किसे कहते हैं [ Bhasha Kise Kahate Hain ] परिभाषा और भेद – Bhasha Aur Boli Mein Antar

Bhasha Kise Kahate Hain – परिभाषा और भेद – Bhasha Aur Boli Mein Kya Antar Hai

 

आज आपको इस लेख में Bhasha Kise Kahate Hain (भाषा किसे कहते हैं) इस सवाल का जवाब अत्यंत सरल शब्दों में बताने वाले है. जब हम Bhasa Kise Kahte Hai या फिर Bhasha Kise Kehte Hain वैसे ही Bhasha Kya Hai ऐसे सवालो पर विचार करते है. तब हमारे मन में राष्ट्रभाषा, मातृभाषा,  लिखित भाषा, सांकेतिक भाषा, मानक भाषा, संपर्क भाषा, Bhasha Aur Boli, भाषा के क्षेत्रीय रूप आदि शब्द भी घुमने लगते है. आज इस लेख में आपको इन सभी विचारो के साथ ही भाषा किसे कहते हैं परिभाषा, Bhasha Ka Kya Mahatva Hai, भाषा के भेद इस, भाषा किसे कहते हैं उदाहरण सहित आपको बताने वाले है.

 

Bhasha Kise Kahate Hain Hindi Mein – भाषा किसे कहते हैं इन हिंदी एक चर्चा 

 

आज की चर्चा Bhasha Kise Kahate Hain Hindi Mein Bataiye इस बारे में है. इस चर्चा को करने की आवश्यकता क्यों पड़ी इस बारे में जानना जरुरी है. इसके पीछे है आपके गूगल पर पूछे जाने वाले सवाल जिनमे से कुछ सवाल आपके सामने रखने जा रहे है. जो निचे बता रहे है :- 

1. Bhasha Kise Kahate Hain ?

2. भाषा किसे कहते हैं ?

3. भाषा किसे कहते है ?

4. Bhasa Kise Kahte Hai ?

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9. भाषा किसे कहते हैं हिंदी व्याकरण ?

10. भाषा किसे कहते हैं इन हिंदी ?

11. भाषा किसे कहते हैं हिंदी में ?

12. भाषा किसे कहते हैं परिभाषा ?

13. भाषा किसे कहते हैं परिभाषा लिखिए ?

14. बताइए भाषा किसे कहते हैं और उसके भेद ?

15. भाषा किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए ?

16. भाषा किसे कहते हैं उत्तर ?

17. भाषा किसे कहते हैं उदाहरण सहित ?

18. Bhasha Kise Kahate Hain Hindi Mein ?

19. Bhasha Kise Kahate Hain In Hindi ?

20. Bhasha Kise Kahate Hain Short Answer ?

21. Bhasha Kise Kahate Hain Answer ?

22. Bhasha Kise Kahate Hain Hindi Mein Bataiye ?

आगे इस बारे में इस “भाषा किसे कहते हैं – परिभाषा और भेद” लेख की प्रस्तावना में विस्तृत रूप में चर्चा करेंगे. 

 

भाषा किसे कहते हैं – Bhasha Kise Kahate Hain In Hindi : प्रस्तावना

 

यदि भाषा को साधारण रूप में देखे तो ये वैचारिक आदान-प्रदान का एक माध्यम है. भाषा हमारी विचारो की अभिव्यक्ति का सबसे सरल और विश्वसनीय माध्यम कहा जा सकता है. यही नहीं वह हमारे अभिव्यक्ति के निर्माण, अभिव्यक्ति के विकास, हमारी अस्मिता, हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का एक साधन है. अपनी भाषा के बिना मानव बिलकुल ही अपूर्ण सा प्रतीत होता है. वैसे ही भाषा के बिना मानव अपनी ऐतिहासिक परम्परा से विच्छिन्न हो जाता है.

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Bhasha Kise Kahate Hain

 

आपको इस लेख में भाषा किसे कहते हैं परिभाषा को अच्छी तरह जानने का मौका मिलेगा. लेकिन उसके पहले आपको भाषा किसे कहते हैं इसका बिलकुल Short Answer बताएँगे. क्योकि जरुरी नहीं आपको इसका विस्तृत उत्तर ही चाहिए होगा. यदि आपको इसका Short Answer की आवश्यकता हो तो हमारे ब्लॉग के माध्यम से ये आपको मिल सकता है. उसके बाद आपको इसकी विस्तृत चर्चा के और लेकर जायेगे.

 

भाषा किसे कहते हैं उत्तर इंडियन गप्पा के द्वारा – Bhasha Kise Kahate Hain Short Answer By Indian Gappa

 

इस सेक्शन में भाषा क्या है? इस बारे में एकदम शोर्ट में उत्तर बताएँगे. जो की जिसमे भाषा का आसान अर्थ इस प्रकार बताया जा सकता है.

 

किसी व्यक्ती या मनुष्य के लिए अपनी विचारों और भावनाओं को दुसरो तक पहुचाने के लिए भाषा एक माध्यम है.

 

भाषा का शाब्दिक अर्थ :- भाषा यह शब्द संस्कृत के शब्द “भाष” से आया है. “भाष” का मतलब “बोलना” ऐसा बताया गया है. अर्थात भाषा वह है जो किसी मनुष्य के मुख से “बोला जाने वाला हर एक शब्द”

 

हमारे ब्लॉग “इंडियन गप्पा” के द्वारा भाषा की परिभाषा इस प्रकार बताई गयी है :- 

भाषा मुख्यतया ध्वनि-संकेतों की एक व्यवस्था, मानवमात्र के मुख से निकली एक अभिव्यक्ति, अभिव्यक्ति का एक साधन, विचारों के आदान-प्रदान का सामाजिक साधन है. जिसके माध्यम से मनुष्य के विचारों का आदान प्रदान किया जाता है.

 

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भाषा किसे कहते हैं परिभाषा – Bhasha Kya Hai ?

 

भाषा को परिभाषित करने के लिए हमारे ब्लॉग के द्वारा बहुत से महान विचारको के परिभाषाओ को इसमें स्थान दिया गया है. निचे आप भाषा की कुछ परिभाषाएं देख सकते है. 

 

1. महान दार्शनिक प्लेटो के अनुसार भाषा की परिभाषा :- [विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर है-विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है तथा वही शब्द जब ध्वन्यात्मक-होकर-होठों-पर प्रकट होती है-तब उसे भाषा की कहा जाता हैं.]

 

2. वेंद्रीय के अनुसार भाषा की परिभाषा :- [भाषा एक तरह का चिह्न है-चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है-जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों के समक्ष प्रकट करता है-ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं.]

 

4. स्वीट के अनुसार भाषा की परिभाषा इस प्रकार बताई गयी की-ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है

 

5. स्त्रुत्वा के अनुसार भाषा की परिभाषा :- [भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतीकों का तंत्र है-जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग एवं संपर्क करते हैं.]

 

6. ब्लाक तथा ट्रेगर के द्वारा भाषा की परिभाषा :-भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तंत्र है-जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता है.]

 

7. इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के द्वारा भाषा की परिभाषा में बताया गया है भाषा को यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तंत्र है-जिसके द्वारा मानव प्राणि एक सामाजिक समूह के सदस्य और सांस्कृतिक-साझीदार के रूप में एक सामाजिक समूह के सदस्य संपर्क एवं संप्रेषण करते हैं]

 

8. ए. एच. गार्डिबर के द्वारा भाषा की परिभाषा :- [विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट भ्वनि-संकेतों का व्यवहार किया जाता है. उनके समूह को भाषा कहते हैं.]

 

9. अन्य प्ररिभाषा में कहा गया है की, ‘भाषा यादृच्छिक और वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह प्रणाली है. जिसके माध्यम से मानव परम्परा और विचारों का आदान-प्रदान करता है. 

 

उपरोक्त कथन से भाषा के बारे में चार बाते निश्चित होती है. जो इस प्रकार है :- 

 

a) भाषा में जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं इसीलिए भाषा संकेतात्कम होती है. उन सभी ध्वनियो का किसी न किसी वस्तु या कार्य से सम्बन्ध जरुर होता है. ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक हो सकती हैं.

 

b) भाषा एक सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना है. जिसमें कर्ता याने कार्य करने वाला, कर्म, क्रिया, इत्यादि व्यवस्थिति रूप में आ सकते हैं.

 

c) भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है. याने मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से संकेतों का उच्चारण आदि का भाषा के अंतर्गत समावेश होता हैं.

 

d) भाषा को यादृच्छिक संकेत बताया गया है. हर एक भाषा में एक विशेष ध्वनि को एक विशेष अर्थ का वाचक ‘मान लिया जाता’ है. फिर वह परम्परानुसार उसी अर्थ में फिक्स हो जाता है.  

 

भाषा का सम्बन्ध एक अकेले व्यक्ति से लेकर हमारे पुरे विश्व तक है. समाज सापेक्षता भाषा के लिए अनिवार्य घटक है. इसे ऐसे ही मानना चाहिए जैसे की व्यक्ति सापेक्षता को माना जाता है. 

 

भाषा को संकेतात्मक बताया गया है. याने यह एक प्रतीक-स्थिति है. इसकी प्रतीकात्मक गतिविधि के चार प्रमुख संयोजक बताये जा सकते है :- पहला व्यक्ति वह जो संबोधित करता है और दूसरा व्यक्ति वह जिसे संबोधित किया जाता है. तीसरी संकेतित वस्तु होती है. चौथी-प्रतीकात्मक संवाहक जो संकेतित वस्तु की ओर प्रतिनिधि भंगिमा के साथ इंगित करता है.

 

Bhasha Kise Kahate Hain [Bhasa Kise Kahte Hai] जाने विस्तृत रूप में 

 

के समाज की विकास प्रक्रिया में एक भाषा का दायरा भी बढ़ता है. यही नहीं एक समाज में एक जैसी भाषा बोलने वाले व्यक्तियों उच्चारण-प्रक्रिया, उनका बोलने का ढंग, वाक्य-विन्यास, शब्द-भण्डार,  इत्यादि अलग-अलग हो जाने से उनकी भाषा में पर्याप्त अन्तर आ जाता है.

 

दूसरे शब्दों में कहे तो, जिसके द्वारा हम अपने और एक दुसरे के भावों को कथित अथवा लिखित रूप से जिस प्रणाली के द्वारा समझते है उस प्रणाली को भाषा कहते है. 

 

वैसे ही सार्थक शब्दों के संकेतसमूह को भाषा कहा जाता है. लेकिन यह संकेत अपने आप में स्पष्ट होना आवश्यक है.

 

भाषा मनुष्य के जटिल मनोभावों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है. किन्तु ऐसा केवल संकेत भाषा नहीं कर सकती है. जैसे की रेलगाड़ी का गार्ड गाड़ी चलने वाली है ऐसा बोलने के लिए हरी झण्डी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है. इससे सभी को समझ में तो आ जाता है. किन्तु इसमें पहलु ये भी की जिसे इस बारे में मालूम है केवल वही इस बात को समझ पायेगा. इसीलिए भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्त्व नहीं है. 

 

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सभी संकेतों को सभी लोग ठीक-ठीक समझ जाये ये जरुरी नहीं है. वैसे ही संकेत के माध्यम से विचार सही-सही व्यक्त हो पाते हैं. सारांश रूप में कह सकते है की, भाषा को स्पष्ट और सार्थक होना चाहिए.

 

भाषा विचारों को व्यक्त का एक साधन है. ये साधन परमात्मा ने केवल इन्सान को ही दिया है जो वाचिक ध्वनियों का प्रयोग कर सकता हैं. जो दुसरो को स्पष्ट समझ में आती है. 

 

उसी प्रकार मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों, वाक्य आदि का समूह, जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है उसे भाषा कहते है. जैसे – जबान, बोली, वाणी इत्यादि.

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एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा तभी बनती है जब उस भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वर एक व्यवस्था में मिलते हैं. 

 

जिसकी सहायता से एक व्यक्ति या समाज या देश के लोग अपने मनोगत तथा मन के विचार एक दूसरे से प्रकट करते हैं उस व्यक्त ध्वनी भाव की समष्टि भाषा कहलाती है. 

 

वर्तमान में सम्पूर्ण विषय में प्रायः हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं. इसमें कुछ ऐसी भाषाये है जो उन्ही लोगो को समझ आती है जो उन्हें बोलते है या रोजमर्रा में उसका उपयोग करते है. सभी अपने समाज विशेष की भाषा को बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते और समझते हैं, परन्तु दूसरी तरफ किसी दुसरे समाज या देश की भाषा को एकाएक बिना सीखे समझना काफी मुस्किल है. 

 

भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के 1. आर्य, 2. सेमेटिक, 3. हेमेटिक इत्यादि कई वर्ग स्थापित किये और प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ भी स्थापित करके उन शाखाओं के भी बहुत से वर्ग और उपवर्ग बनाकर उनमें बहुत सी भाषाओं और उपभाषाओं तथा बोलियों को समाविष्ट किया गया है. जैसे हिंदी भाषा(हिन्दी) भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है. इसमें बुंदेलखंडी, अवधी, ब्रजभाषा आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं.

 

कुछ दुरी पर स्थित स्थानों की बोली जानेवाली अनेक बोलियों या उपभाषाओं में बहुत कुछ समनता होती है. उसी समनता के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं. 

 

जिस प्रकार मनुष्य की आदिम अवस्था से लेकर आज तक मनुष्य की सामाजिक अवस्था में विकास हुआ है वैसे ही  भाषा का भी विकास होता आया है. भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत भाषा और प्राकृतों भाषा का, प्राकृतों भाषा से अपभ्रंशों भाषा का और अपभ्रंशों भाषा से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है.

 

वैसे ये वैज्ञनिक सत्य है की, भाषा को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिये लिपियों की मदत लेनी पड़ती है. भाषा और लिपि अपने भाव को व्यक्त करने के दो अभिन्न पहलू हैं. एक को भाषा आप बहुत सी लिपियों में लिख सकते है. उदाहरण के लिए संस्कृत, हिंदी (हिन्दी), मराठी, नेपाली इत्यादि को देवनागरी लिपि में लिखा जाता हैं जबकि पंजाबी भाषा गुरूमुखी तथा शाहमुखी ही लिपि में लिखी जाती है.

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Bhasha Ke Kitne Bhed Hote Hain – भाषा के रूप – भेद- प्रकार 

 

हमारे इस लेख में आपको भाषा के भेद या रूप-प्रकार के बारे में आपको बिलकुल संक्षेप में बताने वाले है. इसका मुख्य करना ये भी है की, भाषा के भेद या रूप-प्रकार को इस लेख में स्पष्ट करने का मतलब इस लेख की विषय वस्तु से भटकना होगा. क्योकि यहाँ हम केवल भाषा के बारे में ही सम्पूर्ण जानकारी आपको देने के लिए उत्तरदायी है. इस उत्तरदायित्व को निभाना हमारी पहली जिम्मेदारी है. निचे भाषा के कुछ प्रचलित रूप बताये गए है.

 

इन्हें सक्षेप में समझ लेते है. इन्ही भाषा के भेद या रूप-प्रकार के सन्दर्भ में हमारे द्वारा एक अलग से लेख लिखा जायेगा. जो आप भविष्य में जरुर पढियेगा.

 

अभी संक्षेप में इन्हें जान लेते है….!

 

1. बोलचाल की भाषा या बोलियाँ :- 

हमें ‘बोलचाल की भाषा’ को समझने के लिए ‘बोली’ (Dialect) को समझना आवश्यक है। ‘बोली’ उन सभी समाज की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है. ये काफी मिलती जुलती होती है. जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण रूप से हम अपने समूह या घरों में किया जाता है, उन सभी ‘बोलचाल की भाषा’ को बोली कहते है.

 

भारत जैसे देश में बोलियों की संख्या हजारो-लाखो में है. ये घास-फूस-पत्तो की तरह अपने आप ही जन्मती है और क्षेत्र-विशेष में बोली जाती है. जैसे- मगही, भोजपुरी, मराठी, अवधी, तेलगु, इंग्लिश इत्यादि.

 

2. मानक भाषा (Manak Bhasha) या परिनिष्ठित भाषा :- 

आप ये भी लीजिये की, भाषा के स्थिर रूप तथा सुनिश्चित रूप को मानक भाषा या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं. यह भाषा व्याकरण से नियन्त्रित होती है. इसका उपयोग, प्रयोग शिक्षा, साहित्य और शासन में होता है. इसे ऐसे कहा जा सकता है की, एक बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा में परिवर्तित हो जाती है. जैसे खड़ीबोली कभी बोली हुआ करती थी लेकिन आज परिनिष्ठित भाषा बन गयी है. जिसका प्रयोग भारत में अनेक जगहों पर होता है.

 

परिनिष्ठित भाषा या मानक भाषा व्यापक शक्ति अर्जित करके सामाजिक और राजनीतिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्ट्रभाषा का स्थान पा सकने में समर्थ होती है. 

 

भाषा में एकरूपता लाने के लिए शिक्षाविदों द्वारा, भाषा विद्वानों के द्वारा भाषा के जिस स्वरुप को मान्यता दी जाती है उसे “मानक भाषा” कहा जाता है.

 

जैसे हिंदी भाषा में ऐसे कुछ शब्द जिनके मानक रूप को विद्वानों द्वारा मान्यता दी गयी है, जैसे

“गयी” का मानक रूप – “गई” 

“ठण्ड” का मानक रूप “ठंड” 

“अन्त” का मानक रूप “अंत” 

“रव” का मानक रूप “ख” 

“शुद्ध” का मानक रूप “शुदध” 

 

3. संपर्क भाषा या सम्पर्क भाषा :-

देखिये जब अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है ऐसी विशिष्ठ भाषा को संपर्क भाषा या सम्पर्क भाषा कहते हैं. 

 

4 . राजभाषा :-

किसी भी देश की राजभाषा में उस देश की सरकार के कार्यों का संचालन होता है. कुछ लोग राजभाषा और राष्ट्रभाषा दोनों को सामान ही मानते हैं. लेकिन दोनों के अर्थ एक से नहीं है. राष्ट्रभाषा सारे राष्ट्र के लोगों के लिए संपर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार के कामकाज के लिए उपयोग की जाती है.  

 

जो भाषा जो देश के सरकारी कार्यालयों व सरकारी राज-काज में प्रयोग की जाती है उसे राजभाषा कहा जाता है. 

 

उदहारण. भारत की कार्यालयीन कामकाज की राजभाषा अंग्रेजी और हिंदी दोनों हैं. वही भारत के विभिन्न राज्यों में उनके कार्यालयीन कामकाज की भाषा भिन्न होती है. जैसे महाराष्ट्र राज्य में मराठी और अंग्रेजी ये कामकाज की भाषा है. उसी के विपरीत अमेरिका की राजभाषा अंग्रेजी है.

 

5. राष्ट्रभाषा :-

राष्ट्रभाषा से तात्पर्य ऐसी भाषा से है जो एक देश के विभिन्न भाषा-भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके. देश के रहवासियों और लोगो के लिए की वहा की राष्ट्रभाषा उस देश के एकता, गौरव, अस्मिता और अखंडता का प्रतीक होती है. क्योकि राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं, बोलते हैं या पढ़ते हैं. महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा कहा है. 

 

एक विशिष्ठ भाषा अनेक देशों की राष्ट्रभाषा हो सकती है; उदा. वर्तमान में अंग्रेजी भाषा अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा़ आदि बहुत से देशों की राष्ट्रभाषा है. भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं दिया गया, किन्तु इसकी व्यापकता को देखते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा कहा जा सकता हैं.

 

6. अन्तर्राष्ट्रीय भाषा :-

जब कोई भाषा विश्व के एक अधिक देशो द्वारा बोली जाती है तब वह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा कहलाती है. अंग्रेजी भाषा इसका के अन्तर्राष्ट्रीय भाषा का सटीक उदाहरण है.

 

7. मातृभाषा:

देखिये यदि आपका जन्म एक मराठीभाषी परिवार में हुआ है, इसलिए वह मराठी बोलते है. वैसे आपके मित्र का जन्म हिंदीभाषी परिवार में हुआ है, इसलिए वह हिंदी बोलता है. तो ऐसे में मराठी व हिंदी क्रमशः उनकी मातृभाषाएँ कहलाएगी. इस प्रकार “मातृभाषा” उस भाषा को कहते है, जिसे बच्चा अपने परिवार के द्वारा सीखता और अपनाता है.

 

इसे ऐसे समझते है जब कोई बालक अपने परिवारिक सदस्यों द्वारा वैसे ही आस पास के इलाके में बोली जाने वाली भाषा को बड़ी आसानी से सीख जाता है. यही उसकी ‘मातृभाषा’ होती है.

 

8. प्रादेशिक भाषा:

जब कोई विशिष्ठ भाषा एक प्रदेश विशेष में बोली जाती है तो ऐसी भाषा ‘प्रादेशिक भाषा’ कहलाती हैं.

 

Bhasha Aur Boli Mein Kya Antar Hai –  बोली और भाषा में अन्तर क्या है ? 

 

इस बात को भली-भांति समज लीजिये की, बोली और भाषा में अन्तर होता है. यह किसी भाषा की छोटी इकाई होती है. बोली का संबंध ग्राम या मंडल अर्थात सीमित क्षेत्र से होता है. 

 

यह मुख्य रूप से बोलचाल में उपयोग की जाने वाली भाषा है. इसमें घरेलू शब्दावली तथा देशज शब्दों की अधिकता होती है. ऐसा कहा जाता है की हर 10 किलोमीटर के बाद बोली का रूप और लहजा बदलते पाया जाता है. ये भी एक फेक्ट है की, बोलिया लिपिबद्ध नहीं होने के कारण इसमें साहित्यिक रचनाओं का अभाव है. इसमें व्याकरणिक दृष्टि से भी ढेरो विसंगतियाँ पायी जाती है.

 

एक परिनिष्ठित भाषा के आदर्श भाषा होती है. बोली विकसित होकर विभाषा बनती है और बाद में एक सुदृढ़ भाषा बनती है. इसे ही राष्ट्र-भाषा या टकसाली-भाषा भी कहते है.

 

इस प्रकार का मौलिक अंतर बोली और भाषा में बताया जा सकता है. 

 

Bhasha Kise Kahate Hain – भाषा का उद्देश्य :

 

आज के Bhasha Kise Kahate Hain इस लेख में जो भाषा के ऊपर हमारी चर्चा काफी रंग में आ गयी है. जिसमे आगे हम भाषा के उद्देश्य के बारे में जानेंगे. 

 

हमारे इंडियन गप्पा इस ब्लॉग के द्वारा भाषा का उद्देश्य इस प्रकार बताया जा रहा है:- 

 

“किसी भी भाषा का मुख्य उद्देश्य विचारों का आदान-प्रदान करना और अपना विकास करना होता है. यही सभी भाषाओ मुख्य उद्देश्य भी होना चाहिए. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसकी बोलियाँ उस भाषा की सहायता करती है” 

 

भाषा किसे कहते हैं – भाषा के उपयोग :

 

हमें आपस में बातचीत करने से लेकर हमारी समाजिक गतिविधियों में भाषा की आवश्यकता पड़ती है. ये पूर्ण रूप से स्पष्ट है की, भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सर्वाधिक उपयोगी और महत्वपूर्ण साधन है. क्योकि संकेतों से बताई गयी बात में भ्रांति की संभावना होती है. लेकिन भाषा की मदत से हम अपनी बात को स्पष्ट रूप में दूसरों को बता सकते हैं.

 

वैसे ही भाषा का लिखित रूप में होना भी कम उपयोगी सिद्ध नहीं होता है. समाचार-पत्र पुस्तक, पत्र, आदि का उपयोग हम दैनिक जीवन में करते हैं. ये किसी न किसी भाषा में होते ही है. लिखित रूप में संचित होने के कारण दस्तावेज, पुस्तकें, आदि को ज्यादा समय तक सुरक्षित रखने में सहायता मिलती हैं. महाभारत, रामायण जैसे ग्रंथ और ऐतिहासिक शिलालेख आज तक इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि वे जिस भी भाषा में हो लेकिन एक लिखित रूप में रूपांतरित किया गए थे.

 

Bhasha Kise Kehte Hain – भाषा की प्रकृति :-

 

भाषा किसे कहते हैं इन हिंदी इस लेख में आगे भाषा की प्रकृति के बारे में जानेंगे. भाषा के अपने गुण और स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहा जाता हैं. भाषा अपने आप में सागर की तरह सदा चलती और बहती रहती है. हर एक भाषा की अपनी प्रकृति और आंतरिक गुण-अवगुण होते है. भाषा मनुष्य को प्राप्त एक सामाजिक शक्ति की तरह होती है. मनुष्य अपनी भाषा को अपने पूवर्जो से सीखता है और आगे उसका विकास करता है.

 

भाषा परम्परागत और अर्जित दोनों ही स्वरुप की होती है. जीवन्त भाषा “बहते पानी” के सरीखे सर्वदा प्रवाहित होती रहती है. वैसे ही भाषा के दो रूप है- कथित रूप और लिखित रूप. हम किसी भी प्रयोग कथित रूप में याने बोलकर और लिखित रूप में याने लिखकर करते हैं. 

 

पुरे विश्व में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं और बोली जाती है. भाषा का निर्माण वाक्यों होता है, वाक्य का निर्माण शब्दों से और शब्द मूल ध्वनियों से निर्मित होते हैं. इस प्रकार भाषा के अभिन्न अंगो में वाक्य, शब्द और मूल ध्वनियाँ ये तीनो सम्मिलित हैं. व्याकरण में हम इन्हीं के अंग-प्रत्यंगों का अध्ययन-करते है. जिसे विवेचन कहा जाता है. अर्थात व्याकरण भाषा पर पूर्णतया आश्रित है.

 

भाषा किसे कहते हैं हिंदी में – भाषा और लिपि का सम्बन्ध

 

भाषा किसे कहते हैं इस लेख में आगे हम भाषा और लिपि का सम्बन्ध इस बारे में चर्चा करेंगे. “लिपि” के बारे में विस्तृत चर्चा हमारे आगे के लिए में की जाएगी. 

 

लिपि का शाब्दिक अर्थ ‘लीपना’ या ‘पोतना’ ऐसा होता है. याने विचारो को लिपना या लिखना ही लिपि कहलाता है.

 

इसे ऐसा भी समझा जा सकता है. किसी विशिष्ठ भाषा को मौखिक रूप से लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किए वर्णों और चिह्नों की व्यवस्था को लिपि कहा जाता हैं.

 

ऐसी भी भाषाये है जिन्हें एक से अधिक लिपियों में लिखा जा सकता है. तो दूसरी तरफ कई ऐसी भाषाये है जिसकी एक ही लिपि हो सकती है. जैसे हिंदी भाषा को हम देवनागरी लिप और रोमन लिपि दोनों में ही लिख सकते हैं. निचे देखिये

  • देवनागरी लिपि में – सोनू अपने कार्य पर गया.
  • रोमन लिपि – Sonu Apne Kary Par Gaya. 

 

इसके विपरीत हिंदी, संस्कृत, नेपाली, मराठी, तथा बोडो सभी भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं.

 

आगे हम लिपि के बारे में विस्तृत अध्यन हमारे “देवनागरी लिपि” पर अलग से लिखे गए लेख में करेंगे. अभी हम केवल भाषा और लिपि का सम्बन्ध पर बात करेंगे.  

 

भाषा और लिपि में चोली दामन का साथ कहा जा सकता है. इनका सम्बन्ध अपने आप में अटूट है. एक भाषा तभी जिन्दा रह सकती है जब वो लिपिबध्द की जाये. क्योकि लिपिबध्द होने के बाद ही उसमे विभिन्न साहित्य लिखे जा सकते है. उसी प्रकार लिपि का विकास भी भाषा पर ही निर्भर करता है. जितनी भाषा का विकास और प्रचलन होगा उतना ही उस लिपि का भी विकास होगा. ये एक अटूट सत्य है. इसीलिए भाषा और लिपि का सम्बन्ध जैसे नदी और जल के सामान है. दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे से प्रतीत होते है. 

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Bhasha Kise Kahate Hain In Hindi – भारत की भाषाओं की सूची 

 

Bhasha Kya Hai इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम भारत में बोली जाने वाली भाषाये और उन्हें बोलने वाले अनुपात बताया जा रहा है. निचे आप टेबल के रूप में इसे देख सकते है. 

क्रं. सं. भाषाएँ बोलनेवालों का अनुपात % में

1 हिन्दी     40.2

2 बांग्ला     8.3

3 तेलुगू     7.9

4 मराठी     7.5

5 तमिल     6.3

6 उर्दू     5.2

7 गुजराती    4.9

8 कन्नड़     3.9

9 मलयालम    3.6

10 ओड़िया    3.4

11 पंजाबी     2.8

12 असमिया    1.6

13 संथाली     0.6

14 कश्मीरी    0.5

15 नेपाली     0.3

16 सिंधी     0.3

17 मणिपुरी    0.2

18 डोगरी     0.2

19 कोंकणी    0.2

20 बोडो     0.1

21 संस्कृत     0.01

 

हिन्दी भाषा के बारे में Bhasha Kise Kahate Hain :-

 

विद्वानों का ऐसा मत है कि, हिन्दी भाषा संस्कृत से उत्पन्न हुई है. परन्तु यह सत्य नहीं है. हिन्दी भाषा की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से हुई है और अपभ्रंश की उत्पत्ति प्राकृत से हुई है. हमारी प्राचीन बोलचाल की संस्कृत से प्राकृत भाषा का जन्म हुआ है.

 

ऋग्वेद में मिले नमूनों के मुताबिक ये सिद्ध होता है की, हमारे आर्यों की भाषा पुरानी संस्कृत हि थी. ये नमूने उसके विकास के साथ बहुत सी प्राकृत भाषाओ का निर्माण हुआ है. इस प्रकार विशुद्ध संस्कृत भाषा किसी पुरानी प्राकृत भाषा से ही परिमार्जित हुई ऐसा दिखाई देता है. 

 

हिन्दी भाषा और हिन्दी भाषा का साहित्य अनेक विभाषाओं और उनके साहित्यों की समष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये किसी एक विभाग और उसके साहित्य के विकसित रूप नहीं हैं.

 

वर्तमान में हिन्दी भाषा का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक होते जा रहा है. इसे निम्नलिखित विभागों विभाजित किया जा सकता है :- 1. बिहारी भाषा, 2. पूर्वी हिन्दी, 3. पश्चिमी हिन्दी

 

आगे हम कुछ स्मरणीय तथ्य आपको बता देते है. जिनमे जिस भाषा का विकास कहा से हुआ है इस बारे में आपको जानकारी मिलेगी. 

 

अ) ‘अपभ्रंश’ से ‘राजस्थानी हिन्दी’ का विकास हुआ है.

ब) शौरसेनी’ से ‘पश्चिमी हिन्दी’ का विकास ‘हुआ है.

क) ‘अर्द्धमागधी’ से ‘पूर्वी हिन्दी’ का विकास हुआ है.

ख) ‘मागधी’ से ‘बिहारी हिन्दी’ का विकास हुआ है.

ग) ‘खस’ से ‘पहाड़ी हिन्दी’ का विकास हुआ है.

 

Bhasha Kise Kahate Hain In Hindi -बार बार पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Ask Question)

 

हमे इस लेख जिसमे Bhasha Kise Kahate Hain Hindi Mein चर्चा की जा रही है. इसमें आगे आपको कुछ  Frequently Ask Question याने भाषा से जुड़े बार बार पूछे जाने वाले सवाल के जवाब देने की तरफ चलने का समय आ गया है. उसके बाद इस सफ़र को अंतिम पढाव की ओर लेकर समाप्त करना है. 

 

आइये जान लेते है उन सवालो के बारे में…!

 

राष्ट्रभाषा किसे कहते हैं? (Rashtra Bhasha Kise Kahate Hain ?)

 

Answer :- किसी भी राष्ट्र द्वारा या देश द्वारा जब किसी भाषा को अपने किसी राजकीय कार्य के लिए भाषा के रूप में स्वीकार करने की घोषणा की जाती है या उसे इस रूप में अपनाया जाता है तो उसे राष्ट्र भाषा कहना चाहिए. अर्थात किसी राष्ट्र के अनुसार उसकी राजकीय क्रियाकलापों के लिए घोषित कोई विशिष्ठ भाषा को राष्ट्र भाषा कहा जाता है.

 

भारत में कितनी भाषा बोली जाती हैं? (Bharat Mein Kitni Bhasha Boli Jati Hai ?)

 

Answer :- इस बात का सही तरीके से अनुमान लगाना मुश्किल है की, पूरे भारत में कितनी भाषाएं बोली जाती है. वो इसीलिए की, भारत में अनेक भाषाएँ बोली और समझी जाती है. लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार सिर्फ 22 भाषा को मान्यता प्राप्त है. 

 

किन्तु 2011 के आंकड़ों के अनुसार ऐसी कुल 121 भाषाएं है जो  भारत में बोली और समझी जाती हैं और इन्हें 10,000 से ज्यादा लोग इन भाषाओ को बोलते और समझते है. इसके आधार पर इन्हें इस सूचि में शामिल किया गया है.  

 

भारत में संविधानिक रूप से आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है उन 22 भाषाओ के नाम निम्नलिखित है :- 1. हिंदी, 2. बंगाली, 3. असमिया, 4. बोडो, 5. डोंगरी, 6. गुजराती 7. तमिल, 8. तेलुगू, 9. उर्दू, 10. सिंधी, 11. संथाली, 12. संस्कृति, 13. पंजाबी, 14. ओरिया. 15. नेपाली. 16. मराठी. 17. मणिपुरी, 18. मलयालम, 19. मैथिली, 20. कश्मीरी, 21. कनाडा, 22. कोंकड़ी 

 

ये बात सबसे महत्वपूर्ण है की इन 22 भाषा को भारत के लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या बोलती और समझती है. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार इन सभी भाषाओं को सूचीबद्ध करके राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया गया.

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Bhasha Ke Kshetriya Roop Ko Kya Kahate Hain – भाषा के क्षेत्रीय रूप को क्या कहते हैं ?

 

Answer :- Bhasha Ke Kshetriya Roop Ko Boli Kahate Hain याने भाषा का क्षेत्रीय रूप बोली कहलाता है. 

 

भाषा का क्या महत्व है? (Bhasha Ka Kya Mahatva Hai ?)

 

Answer :- 1. अभीव्यक्ति का साधन है. 2. मानव विकास का मूल आधार है. 3. मानव सभ्यता और संस्कृति की पहचान है.  4. भाषा से विचार शक्ति का विकास होता है. 5. ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन है.

 

मौखिक भाषा किसे कहते हैं  ? (Maukhik Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- जिस समय हम अपने विचारों को बोलकर और सुनकर अभिव्यक्त करते हैं तो समझिये हम मौखिक भाषा का प्रयोग कर रहे है. ऐसी ही भाषा को मौखिक भाषा कहा जाता हैं. अर्थात दो व्यक्तियों के बीच में होने वाली बात मौखिक भाषा का ही रूप होता है.

 

मातृभाषा किसे कहते हैं ? (Matra Bhasha Kise Kahate Hain?) (Matra Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- जो भाषा अपने जन्म लेने के बाद मनुष्य जो सर्वप्रथम सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहा जाता हैं. किसी व्यक्ति की सामाजिक पहचान उस व्यक्ति की मातृभाषा होती है. जैसे राजस्थानी लोगो की भाषा राजस्थानी हम तब समझते है जब वो उसे बोलते है. 

 

लिखित भाषा किसे कहते हैं ? (Likhit Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- किसी भी भाषा का वह रूप जिसमें व्यक्ति अपने विचार को लिखकर प्रकट करता है इसे लिखित भाषा कहा जाता है. लिखित भाषा को दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझ सकता है. 

 

सांकेतिक भाषा किसे कहते हैं ? (Sanketik Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- एक भाषा जिसमें किसी बात को समझाने के लिए विभिन्न प्रकार के उंगलियों का सहारा, हाथों का सहारा, किस चीज को देखकर समझाना अपने चेहरे के हाव-भाव बदलना यह सभी “सांकेतिक भाषा” कही जाती है. 

 

मानक भाषा किसे कहते हैं ? (Manak Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- भाषा में एकरूपता लाने के लिए शिक्षाविदों द्वारा, भाषा विद्वानों के द्वारा भाषा के जिस स्वरुप को मान्यता दी जाती है उसे “मानक भाषा” कहा जाता है.

 

संपर्क भाषा किसे कहते हैं ? (Sampark Bhasha Kise Kahate Hain?)

 

Answer :- देखिये जब अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है ऐसी विशिष्ठ भाषा को संपर्क भाषा या सम्पर्क भाषा कहते हैं. 

 

Conclusion :-

आज आपको भाषा किसे कहते हैंपरिभाषा और भेदBhasha Aur Boli Mein Antar इस लेख में Bhasha Kise Kehte Hain या फिर Bhasa Kise Kahte Hai उसी प्रकार Bhasha Kya Hai ऐसे सवालो पर विस्तृत चर्चा करके उनका सुसंगठित जवाब दिया गया. तब मन में घुमने वाले मातृभाषा, लिखित भाषा, राष्ट्रभाषा, मानक भाषा, सांकेतिक भाषा, Bhasha Aur Boli, संपर्क भाषा, भाषा के क्षेत्रीय रूप इस सभी के बारे में भी अच्छी खासी जानकारी आपके सामने रखी गयी. आज इस लेख में आपको इन सभी विचारो के साथ ही भाषा किसे कहते हैं, भाषा किसे कहते हैं परिभाषा, भाषा के भेद, Bhasha Ka Kya Mahatva Hai इन सभी प्रश्नों पर भी प्रकाश डाला गया.